Monday, September 20, 2010

मैं भुला नाम अपना भी

किताबों को लगा दिल से,
वो पहली बार जब आई |
मैं भुला नाम अपना भी,
चली कुछ ऐसी पुरवाई |

वो चलना यार झुक कर के,
हवा के वेग के जैसा |
मैं भुला नाम अपना भी,
वो जब भी सामने आई |

बहुत चंचल हुआ करता था,
मैं भी उन दिनों में पर |
नहीं कुछ बोल पाया मैं,
वो जब भी सामने आई |

मैं यादों के समंदर में,
लगा गोते हुआ विजयी |
मगर वो दिल कि बातों को,
कहाँ अब भी समझ पाई |

सुना है अब तलक मुझसा,
एक साथी ढूंढती है वो |
जो उसके साथ था हरदम,
उसे वो ढूंढ ना पाई |

उसे नफ़रत थी गजलों से,
मुझे कुछ लोग कहतें थे |
हर ग़ज़ल नाम थी उसके,
जिसे वो पढ़ नहीं पाई |

किताबों को लगा दिल से,
वो पहली बार जब आई |
मैं भुला नाम अपना भी,
चली कुछ ऐसी पुरवाई |

Saturday, September 11, 2010

चल गयी

अरसो से मैं भी आप ही की तरह एक इन्सान हूँ,
मगर अपनी बाई आँख से परेशान हूँ, चल जाती है -
चल जाती है, किसी को खल जाती है,
कोई मचल जाती है, और कोई मरे क्रोध के जल जाती है,
बात है मेरे बचपन की - शायद सन १९५५ की,
बैठा था क्लास मैं , एक लड़की थी पास मैं,
नाम था उसका ममता , मैंने उसे देखा - उसने मुझे देखा,
बस चल गयी------------
लड़की क्लास से चली गयी, थोड़ी देर बाद  , मुझको है याद -
प्रिंसपल ने मुझे बुलाया - और लम्बा चौड़ा लेक्चर पिलाया-
शर्म नहीं आती , क्लास मैं ऐसी हरकत करते हो |
हुआ ये अंजाम , कट गया नाम |
फिर भरी फार्म , इंटरव्यू लैटर आया |
गया इंटरव्यू मे, खड़ा था क्यू मे |
सामने एक महिला थी खढी,
उसे मुझे देखा - मैंने उसे देखा , बस चल गयी--
बस चल गयी -------------
महिला मारे क्रोध के जल गयी,
क्यू मैं खड़े लोग चौके ,
कुछ महिला का पक्छ ले भौके |
बढ़ गयी बात, चलने लगे जुटे चप्पल लात|
किसी तरह वहां से भागा,
लोग पीछे पीछे , हम आगे - आगे,
सामने एक दरवाजा नजर आया ,
पहुच गया अंदर , वहां सामने एक महिला खड़ी थी |
में रहा मौन |
उसने कहा अरे कुछ बताते हो ,
या किसी का नाम ले चिलाऊ,
में कुछ बताऊ अपनी ज़िब्वा हिलाऊ ,
तब तक चल गयी ------
बस चल गयी------------
महिला क्रोध के मारे जल गयी ,
उसने दो-चार का नाम ले पुकारी -
आ गया भाई , भतीजा , चाचा , मामा |
मच गया हंगामा |
पेज़ाम बन गया चड्डी ,
बनियान बन गया कुरता,
और लोग मार-मार कर,
मुझको बना दिया भुरता |
यहाँ तक की मैं हो गया बेहोश,
और लोग निकलने लगे रोश |
जब आया होश तो देखा, की अस्पताल के बेड पर पड़े है |
डॉ नर्श खड़े है - उसने बोली कहिये अब कैसी तबियत है आपकी |
मैं कुछ बोलू अपना मुंह खोलू , तब तक चल गयी ,
बस चल गयी --------
नर्स कुछ न बोली, मगर डॉ को खल गयी |
थोड़ी देर बाद आया वार्ड बॉय ,
बोला साहब भाग जाओ ,
डॉ को लग गयी है ,
वो तुम्हारा केस बिगड़वा देगा |
वरना जिंदा मुर्दा कह कर गड़वा देगा |
वह से भागा तो घर पंहुचा ,
बाप बड़ी जोर से बिगड़े,
बोले शर्म नहीं आती,
इतने बड़े हो गए हो,
अभी तक बाप के सर पर पड़े हो |
अरे कुछ नहीं करते तो- कम से कम शादी तो कर लो |
लड़की मैंने देख ली है,
अभी बच्ची है, अच्छी है |
शादी कर लोगे तो सम्हल जाओगे,
खैर गया देखने लड़की -
शायद मेरी होने वाली सास आयी और मेरे पास आ बोली-
कहिये रस्ते मे कोई तकलीफ तो नहीं हुई,
मैं कुछ कहूँ आपनी जिव्हा हिलाऊ, तब तक चल गयी,
बस चल गयी---------
सास हंस कर बोली,
मैं आपका होने वाली सा हूँ,
लड़की अन्दर हैं, कहिये तो बुलाऊ -
मैं कुछ कहूँ तब तक फिर चल गयी,
बस चल गयी ------
सास क्रोध के मारे से जल गयी,
उसने दो चार का नाम ले पुकारा,
मच गया हंगामा |
खैर किसी तरह घर पंहुचा,
बाप बड़े जोर से बिगड़े,
आग लगे तेरी ज़वानी मे,
डूबकर मर चुल्लू भर पानी में,
पता नहीं कैसे चलते हो,
जहाँ जाते हो - पीट कर घर चले आते हो |

आगाज "ए" सफ़र

मत चाहो किसी को टूट कर , आगाज "ए" सफ़र में|
बिछुडेगा तो एक - एक अदा तंग करेगी ||